सिनेमा की दुनिया लाइट-कैमरा-एक्शन के लिए जानी जाती है. बिना इसके सिल्वर स्क्रीन पर मनोरंजन के संसार का सृजन नहीं होता. कुछ इसी तरह हिंदी के कुछ ऐसे दिग्गज डायरेक्टर हुए जिनका सिनेमा भी सस्पेंस, एक्शन, ड्रामा और मधुर गीत-संगीत के बिना पूरा नहीं होता. मेलोड्रामा उनकी फिल्मों की जान कहलाता है और इसी के आधार पर लाखों, करोड़ों दर्शकों के दिलों पर वो राज करते हैं. यकीनन राज खोसला भी उन्हीं में से एक थे जो मानते थे कि दर्शक सिनेमा हॉल में मनोरंजन हासिल करने आता है. ऐसा मनोरंजन जो उसके दिल और दिमाग को छू जाए और सुरूर बनकर छा जाए.
साठ और सत्तर के दशक में राज कपूर, देव आनंद, बीआर चोपड़ा अपनी तरह की फिल्मों के लिए विख्यात थे लेकिन उन्हीं के बीच राज खोसला कुछ ऐसी फिल्में लेकर आ जाते थे जिसका दर्शकों पर सुरूर सवार हो जाता था. इन दिग्गजों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई. राज खोसला पर्दे पर सस्पेंस और एक्शन का अनोखा कॉकटेल तैयार करते थे. उस दिग्गज डायरेक्टर की जन्मशती शुरू हो गई है. बहुत कम लोगों को ध्यान होगा कि रमेश सिप्पी की शोले में गब्बर सिंह का किरदार राज खोसला की फिल्म मेरा गांव मेरा देश में विनोद खन्ना के निभाए डाकू किरदार जब्बर सिंह से प्रेरित था. ना केवल मिलता-जुलता नाम बल्कि उसका नेचर भी वैसा ही था.
मेरा गांव मेरा देश का जब्बर सिंह और गब्बर सिंह जैसा उसका खौफ
मेरा गांव मेरा देश के एक सीन में धर्मेंद्र और आशा पारेख को पेड़ों में रस्सी से बांध दिया जाता है. सामने जब्बर सिंह बंदूक लेकर बैठा शराब पी रहा है और डाकू गिरोह की खलनायिका ठुमके लगा रही है- मार दिया जाए कि छोड़ दिया जाए… बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए… पूरे गाने पर जब्बर सिंह मूंछों पर ताव दे रहा है और मुस्करा रहा है. और अब रमेश सिप्पी की शोले का सीन याद कीजिए. धर्मेंद्र को गब्बर सिंह ने बांध रखा है. यहां वह अपने गैंग की खलनायिका से तो डांस नहीं करवाता अपितु बसंती बनी हेमा मालिनी से कांच के टुकड़े पर जबरन नचवाचता है और वह गाती है- जब तक है जान मैं नाचूंगी…
हालांकि मेरा गांव मेरा देश राज खोसला के सस्पेंस वाली प्रकृति से कुछ हटकर थी. यह एक एक्शन ड्रामा फिल्म थी. लेकिन गानों के मामले में यह भी अनोखी और यादगार है. मार दिया जाय के अलावा- आया आया अटरिया पे कोई चोर… या फिर हाय ऐसे कैसे मैं सुनाऊं सबको अपनी प्रेम कहानियां… जैसे गाने आज भी हर किसी को झुमाते हैं, दिलों को झकझोर देते हैं.
झुमका गिरा रे… उनकी फिल्म का यादगार गीत
गानों के मामले में उनकी कई फिल्में देव आनंद और राज कपूर की फिल्मों की ऊंचाई को छूती हैं. जिस तरह राज कपूर-देव आनंद कहानी के साथ-साथ गीत-संगीत पर काफी ध्यान देते थे, उसी तरह राज खोसला भी. उनकी फिल्म एक मुसाफिर एक हसीना का गीत- बहुत शुक्रिया, बड़ी मेहरबानी या फिर आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहें… आज भी हर किसी को लुभाता है. दो बदन के सारे गाने सदाबहार हैं.
राज खोसला ने कई ऐसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें वो कौन थी, मेरा साया और अनीता शामिल हैं. इन फिल्मों में उन्होंने साधना के करियर को नये मुकाम पर पहुंचाया था. साधना की ये तीन बेहतरीन फिल्में मानी जाती हैं. इन फिल्मों में काम करने के चलते ही साधना को मिस्ट्री गर्ल की संज्ञा दे दी गई. इन तीनों फिल्मों के गाने आज भी सुने जाते हैं. मेरा साया का गीत झुमका गिरा से… भला कौन भूल सकता है.
झुमका गिरा रे के अलावा उनकी कई और फिल्मों के गाने कालजयी हैं. जैसे कि लग जा गले कि फिर से हंसी रात हो न हो…, तू जहां जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा…, कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना… ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां, ये है बंबई ये है बंबई ये है बंबई मेरी जान या फिर है अपना दिल तो आवारा ना जाने किस पे आएगा… वगैरह.
केएल सहगल के साथ रियाज करते थे राज खोसला
फिल्मों की कहानी में सस्पेंस के अलावा मधुर गीत-संगीत की एक अलग कहानी है. बहुत कम लोगों को ध्यान होगा कि राज खोसला ने प्रारंभ में गायक बनना चाहा था. किशोरावस्था से ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लेते थे. अनोखी बात ये कि उनको कुंदन लाल सहगल का सान्निध्य भी मिला था. राज खोसला बड़े होकर संगीत में ही अपना करियर बनाना चाहते थे लेकिन डायरेक्टर बन गए.
सौवीं जयंती मौके पर राज खोसला की बेटी सुनीता भल्ला ने उनके संगीत प्रेम का खुलासा किया है. उन्होंने पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि माटुंगा में मेरे पुराने घर के पास ही केएल सहगल रहा करते थे. मेरे पिता रोजाना सुबह-सुबह उनके पास जाते और संगीत सीखते. कई बार तो दोनों साथ-साथ रियाज भी करते थे.
सुनीता भल्ला ने यह भी बताया कि राज खोसला के संगीत प्रेम से सहगल साहब काफी प्रभावित हुए. उन्होंने एक दिन उनको रेडियो और फिल्मों में गाने की सलाह दी. सुनीता बताती हैं कि पिताजी को फिल्मों में गाने के कुछ मौके मिले और उन्होंने गाया भी. यह कहानी उनकी मिलाप फिल्म से पहले की है.
जन्मशती के मौके पर मुंबई में फिल्मों का प्रदर्शन
राज खोसला का जन्म 31 मई सन 1925 को पंजाब के राहोन में हुआ था. महज तीन साल की उम्र में उनके माता-पिता मुंबई आ गए थे. राज खोसला एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ाई के साथ साथ रंगमंच की गतिविधियों में भी हिस्सा लेते थे. यहीं से उनका झुकाव सिनेमा और संगीत की तरफ हुआ. उनकी जन्मशती के मौके पर फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन की ओर से मुंबई में उनकी फिल्मों की एक दिनी विशेष प्रदर्शनी लगाई गई. यहां उनकी सुपरहिट मेरा गांव मेरा देश समेत कुछ चुनींदा फिल्में दिखाई गईं. राज खोसला ने मिलाप से सन् 1955 में अपना फिल्मी करियर शुरू किया था. और उनकी आखिरी फिल्म थी- नकाब, जोकि 1989 में आई थी.
राज खोसला ने अमिताभ बच्चन की फिल्म दोस्ताना का भी निर्देशन किया है. साथ में अन्य सितारे थे- शत्रुघ्न सिन्हा और जीनत अमान. सन् 1980 में रिलीज हुई इस फिल्म के प्रोड्यूसर यश जोहर थे. सलीम-जावेद की लिखी दोस्ताना एक कामयाब फिल्म थी. इसके गाने भी काफी मशहूर हुए थे.
शुरुआत में देव आनंद और गुरुदत्त का मिला साथ
लेकिन करियर के शुरुआती दिनों में राज खोसला, देव आनंद और गुरुदत्त के किस्से हिंदी फिल्मों की दुनिया में काफी मशहूर हैं. उन्होंने इन दोनों दिग्गज अभिनेताओं के साथ फिल्में बनाईं. देव आनंद के साथ काला पानी और सोलहवां साल जैसी यादगार फिल्में दीं तो गुरु दत्त के मार्गदर्शन में भी काम किया. राज खोसला की गुरुदत्त के साथ एक अहम फिल्म की थी, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है. और वह फिल्म है- सीआईडी. इस फिल्म से वो एक सफल निर्देशक के रूप में उभरे. इस फिल्म को आज भी शिद्दत से याद किया जाता है. साल 1956 की इस फिल्म में देव आनंद और शकीला की प्रमुख भूमिका थी. और इसी में वहीदा रहमान ने भी अभिनय किया था. यह फिल्म वहीदा रहमान के लिए काफी अहम साबित हुई.
सन् 1966 में आई मनोज कुमार और आशा पारेख की फिल्म दो बदन रोमांटिक कहानी के साथ-साथ मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, आशा भोंसले की आवाज में गाने गानों के लिए जानी जाती है. नसीब में जिसके जो लिखा था… भरी दुनिया में आखिर दिल… राहा गर्दिशों में हरदम… लो आ गई उनकी याद… जब चली ठंडी हवा या फिर मत जइयो नौकरिया छोड़के… जैसे गाने भुलाए नहीं भूलते. शकील बदायूंनी के लिखे गीतों पर रवि के संगीत ने जादू जैसा असर किया था.
विशुद्ध मनोरंजन के लिए याद किए जाते रहेंगे
राज खोसला ने 34 साल के अपने फिल्मी करियर में 25 से अधिक सफल फिल्मों का निर्देशन किया. यह आंकड़ा बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिना जाता है. आखिर वो कौन सी ऐसी बात थी जो राज खोसला की फिल्मों को हिट बनाती है. इस सवाल के जवाब में उनकी बेटी सुनीता भल्ला बताती हैं कि पिताजी हमेशा सिनेमा बनाने की बातें सोचा करते थे. वो जीवन भर काम करते रहे. साफ-सुथरी, पारिवारिक फिल्में बनाना, प्रेम और रिश्ते की संवेदनाओं के साथ आम से आम लोगों को मनोरंजन प्रदान करना ही उनकी फिल्मों का मिशन था. और यही सफलता का राज भी.